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दर दर गंगे

बचपन में देखा था, आम के अचार के सींझने के लिए मेरी नानी, अचार में गंगाजल डालती थी। अब ये समझ कर बड़ा ही अटपटा लगता है। शायद आधुनिकता गंगाजल से उसकी आस्था और उसके गुण के माएने बदल रही है। अभय मिश्र और उनके सहयोगी पंकज रामेंदु के अति सराहनीय प्रयास के रूप में ये किताब, चार राज्यों और तीन चरणों में तीन वर्षों की उनकी गंगा यात्रा, उनकी नज़रों से उनकी ज़ुबानी इस किताब के रूप में हमारी आंखों के सामने लैंडस्केप में चलती है। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के आरी-किनारी घूमती ज़िन्दगियों की कहानियां, उनकी समस्याएं उसके साथ-साथ गंगा की समस्याओं का भी वर्णन करती हैं। इन कहानियों में भावनाओं का ऐसा रेला लगा है जिस में तीस कहानियों में तीन सौ तरह के भावनात्मक जुड़ाव को गिनाया जा सकता है। गंगोत्री से चलकर गंगा सागर के उन तीस शहर जिनमे गंगोत्री, उत्तरकाशी, टिहरी, देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, नरौरा, गंगा नहर, कन्नोज, बिठुर, कानपुर, कड़ा मनिकपुर, इलाहाबाद, विंध्याचल, बनारस, गाज़ीपुर, बक्सर, पटना, बख़्तियारपुर, मुंगेर, सुल्तानगंज, भागलपुर, कहलगांव, राजमहल, फरक्का, मायापुरी, कोलकाता और गंग

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